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Satish Chandra Pandey

Others

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Satish Chandra Pandey

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रोशनी आये भले ही कहीं से भी

रोशनी आये भले ही कहीं से भी

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रोशनी आये

भले ही कहीं से भी

मगर वो आये,

अंधेरे को हराने आये।

उसकी किरणें हों

इतनी तीखी सी

आवरण भेद कर

भीतर जहां हो मन

वहां पहुंचें,

मिटा दें सब अंधेरा।

और जितनी भी 

लगी हो कालिख

उसे भी साफ कर

चमका दे हुस्न मेरा।

वो हुस्न भीतरी है

दिखता नहीं है बाहर

उसे तो रब ही देखता है,

वो सदा साफ रहे मेरा।

क्योंकि रब ही तो सब है

उसकी बाहर व भीतर

सब तरफ ही नजरें हैं

कहीं वो देख न ले 

कालिमा मेरे मन की।

इसलिए रोशनी आये 

व भीतर तक समाये

मिटा दे साफ कर दे

कालिमा मेरे मन की।


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