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रंग दे तू मोहे गेरुआ

रंग दे तू मोहे गेरुआ

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ये भारत की जनता कैसी फँस गई  है,
नेताओं के हाथ लगते ही रस्सी बन गई  है,
रस्साकशी को तैयार बैठे है सब दल,
एक खींचता है इधर तो कोई कहे उधर चल।

भगवा प्रणाम कर इक ‘राम-राम’ करता है,
लाल सलाम ठोककर दूजा 'कन्हैया-कन्हैया' रटता है,
जनता को चाहिऐ  - न राम न कन्हैया,
रंग जँचता नहीं हमें कोई -लाल न भगवा।

कुछ लाल लेकर थोड़ा भगवा मिलाओ,
न इस पार न उस पार, नई उमंगें जगाओ,
जब भगवा और लाल का मेल होगा,
तभी तो इक नया रंग 'गेरुआ' बनेगा।

इस गेरुआ रंग में ख़ुद को भिगोकर,
तभी पास आयो सपने वोटों के लेकर,
नेताओं की लिऐ खुलेगा दिल-दरिया,
झूमता दिल भी गा उठेगा-"रंग दे तू मोहे गेरुआ.."


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