रिश्ते बिखर रहे हैं
रिश्ते बिखर रहे हैं
समझ नहीं आता क्या हुआ है
क्या फितरत में बदलाव हुआ है
या ज़माना बदल गया है
बस इतना समझ आता है
अब रिश्तों की पोटली खुल कर
कुछ बिखर सी गई है।
पहले जहां लगते थे मेहमानों के
आने पर महफिलें
वहां अब वीराने रहा करते हैं
लोगों के दिलों के बड़े रोशनदान
अब जंग खाए से लगते हैं।
पहले जहां बीस लोग भी रह जाते थे
आराम से
वो मकान अब चार लोगों के लिए
भी छोटा हो रहा है
खुले रहते थे जहां सबके लिए
दरवाज़े
वहां घंटी का इंतजाम हो रहा है।
ज़माने की आंधी में
रिश्ते दरक रहे हैं
रिश्तों की पोटली से निकल
साहब अब रिश्ते बिखर रहे हैं।
