पुकार
पुकार
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आ रही है याद ईश्वर आज तेरे अरण्य की
रो रहे हैं ये नयन जब धीर होता निज मन
स्वप्न सृष्टि सी लगती ये मनुज की अठखेलियां
कहता हृदय तू चल निकल इस धाम से उस राम तक
हैं वही कुछेक प्राणी नेक जो चलते तेरे राह पर
हमको भी भर दे भाव से पा लूं मैं तेरे प्रेम ज्योत
पीपल के शीतल छांव सा याद आता तेरा धाम मुझे
माया के इस भव नीर से बस अब विरक्त कर तन मन को
पावन देह के साथ भी पर कोसते हर रोज हैं ये
रहता अकेला लोक पर पर कृत्य है क्षण नाम का
अब तृप्त हुआ इस तमरूपी दलदल जग जाल से
कर कृपा सिन्धु कुछ ऐसा ही संगम हो जाएं तुझसे।