प्रार्थनाएं
प्रार्थनाएं
प्रार्थनायें हो जाती हैं अनसुनी
ऊपर वाले के दरबार में
जब उनमें भरी होतीं हैं
ठूँस-ठूँस कर महत्वाकांक्षायें।
हर कोई खड़ा है कतार में
ईश्वर के दरबार में
हाथ फैलाएं
दामन पसारे,
सबको चाहिए खुशियाँ,
सबको चाहिए बसंत,
सबको चाहिए फूल
महकती कालिंयां,
जायज़ नहीं होतीं हैं
इस तरह की गुहारें।
ईश्वर भी हो जाता है लाचार
इच्छाओं की लम्बी
लिस्ट देख कर
क्योकि लोग सिर्फ मागतें हैं
खुशियां, कलियां और बसंत।
क्यों भूल जातें हैं हम
प्रकृति का शाश्वत नियम
फूल के साथ शूल का अनुबंध
पतझड़ के साथ बसंत का कुञ्ज
अंधेरे के बाद आता सवेरा
एक के बिना दूसरा अधूरा।
जब प्रार्थना हो जाती है अनसुनी
निराश हो कहते हैं यही
ऊपर वाले ने नहीं सुनीं,
पर ये नहीं देखते कि
हमारी मांगों की लिस्ट
कितनी नाज़ायज़ थी।