पोथी पढ़ि पढ़ि
पोथी पढ़ि पढ़ि
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राम नाम की माला जप ली
डाल गले में कण्ठी हार।
मंदिर - मंदिर द्वारे - द्वारे
ढूँढ़ रहे हैं तारणहार।
बेल, पुष्प और दूब चढ़ाते
हो जाएगा बेड़ा पार।
घर - घर में मंदिर बनवावें
मातु-पिता तरसें बिनु प्यार।
निशि दिन छप्पन भोग चढ़ावें
चाहे भूखा सोवै संसार।
पोथी पढ़ि पढ़ि पूजा बाँचें
प्रेम बिना जीवन बेकार।
क्या पूजा, साष्टांग दंडवत ?
अंधभक्ति का कारोबार।
धर्म जुड़ा जब राजनीति से
हो गया जग का बंटाधार।
ज्ञान - विज्ञान - प्रमाण सब भूले
भूले वैज्ञानिक व्यवहार।
कविता रचि-रचि राम भजें हम
राम बसाओ हिय में ध्याव।
मिटे अनीति-व्यभिचार जगत से
हो सत्कर्मों से जग उजियार।
राम राज्य आएगा तब ही
हो आदर्श जगत - व्यवहार।
- विजयानंद विजय