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Ananya Goswami

Others

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Ananya Goswami

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नया परवाज़

नया परवाज़

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यहाँ हर नुक्कड़ पे एक नया ख़ुर्शीद

हर रात एक नया ख़्वाब

और हर सुबह एक नया परवाज़ …


यहाँ से रोज़ सुबह एक क़ाफ़िला निकलता है

तुम्हारे ख़ुल्द से मेरे बोसीदा फ़लक तक

और क्या रखु मैं तवक़्क़ो तुमसे ए साक़ी

जो मुक़म्मल है ज़िन्दगी इसी ताबीर-ए-ख़्वाब से !


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