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Ananya Goswami

Others

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Ananya Goswami

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डूबते सूरज का तबस्सुम

डूबते सूरज का तबस्सुम

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अर्श-ए-सिफ़र से शनासाई थी मेरी... 

लेकिन आज डूबते सूरज का तबस्सुम देखा, 

मुरझाते फूल को हँसते देखा

और तनहा पंछी को गाते सुना। 


अँधेरे के पंखों पर शरर-ए-ज़ीस्त को ठहरते देखा,

बीते लम्हों का ज़िक्र नहीं था कहीं भी, 

खुदा की तोहमत नहीं थी कहीं, 

ए'तिमाद, रिफ़ाक़त, माज़रत का कहीं कोई निशाँ नहीं! 


ये ज़िंदगी जैसे गुलज़ार बन गयी, 

अनकहे लफ़्ज़ जो गुम थे दिल की गिरह में कहीं, 

आज ज़िंदगी का तरन्नुम बन गए,

शायद कोई असरार था मेरी मोहब्बत के लफ्ज़ में कहीं, 

कोई अफसाना था मुकम्मल मेरे रग़बत में कहीं। 


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