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Dr.Pratik Prabhakar

Others

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नवीन सृजन

नवीन सृजन

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तर्क-कुतर्क विचार- विमर्श

करता रहता मन-मगन

हो कैसे उत्थान स्व-पर का

कैसे हो नवीन सृजन

रक्त उद्वेलित,ऊर्जा असीम

कर दे हर भव का दमन

संयम,धैर्य की परीक्षा है ये

हो अहं का बहिर्गमन


लघु-दीर्घ के छल-प्रपञ्च

लिप्त चक्रवात में मन

एक आस बढ़ाये मनोबल

हो जय से अब मिलन।

सीखें,निरखें नवीन ज्ञान

करें नित अध्ययन गहन

मुट्ठी में भाग्य की रेखा भी

बदले जब मन में लगन।।



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