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नारी-आज़ादी

नारी-आज़ादी

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साँस सी घुटने लगी है, और अब ना सह सकूँगी,

फिर ज़माना कुछ भी बोले, आज मैं दिल की करुँगी।


कैद-ख़ाने की दरारें, तोड़ कर आकाश कर दूँ,

इन भुजाओं की शिराओं में हवाओं को मैं भर दूँ,

आज मन उड़ने को आतुर, कैद में ना रह सकूँगी,

फिर ज़माना कुछ भी बोले, आज मैं दिल की करुँगी।


अब नहीं आता मुझे, जीना महज़ लाचारगी में,

हां भले हो जाऊ मैं, मरकर फ़ना आवारगी में,

चूमकर माटी को अपनी दास्ताँ तो कह सकूँगी,

फिर ज़माना कुछ भी बोले, आज मैं दिल की करुँगी।


छू सकूँ ना चाँद पर, बेशक़ फ़तेह कोहसार होगा,

लांघ पाऊ ना समुन्दर, लहरों पे तो अधिकार होगा,

रात हो तारों भरी, कश्ती में बहती ही रहूंगी,

फिर ज़माना कुछ भी बोले, आज मैं दिल की करुँगी।


वक़्त का क्या वक़्त तो, बढ़ता ही रहता है मुसलसल,

पल झपकते ही बना है, आज कल का, आज का कल,

कब तलक खुशकिस्मती की, चाह में बैठी रहूंगी,

फिर ज़माना कुछ भी बोले, आज मैं दिल की करुँगी


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