नादाँ है दिल
नादाँ है दिल
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने,
रोता है तो रोता ही, है हँसता तो हँसता ही !
ना देखे है क्या मसला, कौन यहाँ पर कैसा है।
नादाँ है दिल हार न माने, अपने अपने अलग फ़साने।
न समझे ये सीधी बातें इसकी बातो में तकरार वही है
कर ले बातें खुद ही बैठा औरों से दरकार नहीं है !
शाम ढली तो हुआ मायूस अंधेरे से इसे प्यार नहीं है
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़सान।
सूरज कब तक बैठा रहे ? इसकी इसे परवाह नही है,
तक़रीरों में उलझा है ये इसकी दूजी संसार नहीं है,
रात झिंगुरा धुन सुनाती बैरी बहरा बैठा है,
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने।
भोर हुई है जहाँ में फिर भी स्वप्न की निद्रा जकड़ चुकी है
रात चांदनी होती थी जब उसकी अब तक राह तके है
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने।
मैं समझाऊं और बहलाऊँ बोलू मैं बड़े प्यार से ऐसे,
रे मूरख तू क्या पाएगा बीते रुत की याद कराकर !
उसके चक्कर में सुस्वप्न गुजारा, रात गुज़ारी सिसकी में,
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने।
गई चांदनी रात भी कितनी, कितने गुज़रे टूट के तारे,
अल्हड मस्ती की अंगड़ाई तेरे चक्कर में भूल चुका हूँ,
भोर हुई जब जब जीवन की तेरी सिसकी से आँख खुली !
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने।
खिड़की से जब मिलान हुआ तो नभ की लाली कोस रही थी,
चिड़ियों की खिलती चन चन से जब कर्ण के परदे खुल रहे थे
उस वक़्त भी तेरे धड़ धड़ ने छाती पर हुंकार किया,
तेरी इन नादानियों ने मुझपे बड़ा ही वार किया।
तू होता मेरे साथ अगर तो कुछ और ही होता जीवन में,
अँधेरी रात में भी हम जुगनू के मज़े तो ले लेते !
ढलती रात में करवट के दो चार तो फेरे ले लेते !
जब जब चंदा सुधा बरसाती थी खुद को तो हम धो लेते!
शबनम की बून्दें जो गिरतीं थीं उन्हें होंठ से हम भी छू लेते !
सूरज की किरणों का आलिंगन कोरी बाँहों में कर लेते।
करूणा की वंशी यहाँ कृष्ण बजाएं यहाँ प्रेम का होता है आवंटन,
चल छोड़ दे अपनी नादानी सुनु ज़रा मैं भाँवरे का गुंजन।
मान भी जा अब रहो न ऐसे, चल हट !
कोई छेड़ न देना इसको आ के,
बड़ी मेहनत से इसको मैंने रखा है मना के,
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने।
पागल बैरी मौका पा के ढ़ील देत ही जोर से भागे,
नादाँ है दिल एक न माने, अपने इसके अलग फ़साने।