Sonia Madaan

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न खुद से दूर करो-व्यथा पिता की

न खुद से दूर करो-व्यथा पिता की

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बूढ़ी आंखें नम हुई

फिर याद कर वो दिन

जब इसी तरह हाथ पकड़

लाया था तुम्हें स्कूल

न चाहकर भी किया था

तुम्हें कुछ घंटों के लिए दूर

यह सोचकर कि पढ़ जाओगे

पढ़ लिखकर कुछ बन जाओगे

मुड़ कर पीछे देखा तो

तुम रोए थे कहकर-पापा

मुझे नहीं रहना तुमसे दूर

क्या उस बात का बदला है ये?


उस दिन दूर किया खुद से

बेटा वो मेरी मजबूरी थी

उसके पीछे मंशा

न मेरी कोई बुरी थी

दूर किया तुमको उस दिन

उसी का आज नतीजा है

पैरों पर अपने खड़े हो तुम

नाम और शोहरत थी खूब मिला है


अब इस उम्र में क्या मांगूँ

बस तुम्हारा साथ हो

नजर के सामने रहो तुम

जीवन की तुम आस हो

कुछ ही पल जीवन के

हैं अब मेरे पास

बोझ समझ न दूर करो

कर दो मेरे अंतिम पल खास

बूढ़े तन मैं अब हिम्मत नहीं

दूर रहकर तुमसे जीने की

ना खुद से दूर करो मुझको

वरना रह जाऊंगा लाश।


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