मेरी माँ
मेरी माँ
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जिनका पल्लू पकड़ के चलना सीखा
जिनकी उंगलियाँ पकड़ के रस्ता ढूंढा
जिन्होने ऐसे वक़्त मे बिना सोचे
अपने से पहले मुझे सब दिया
जब कभी मैं कठिनाइयों मे पड़ा
उन्होंने बिना बताए सब कुछ ठीक किया
बहुत सपने होने के बावजूद भी
जिन्होने बस मेरे सपनों से उन्हें पूरा करना चाहा
उन्होंने मुझे इतना कुछ दिया
और सबसे अमूल्य कि उन्होंने मुझ पे विश्वास किया
माँ मेरे लब्ज़ों मे इतनी ताकत और वो सक्षमता नहीं
कि तेरे अवतार को दूसरों के सामने अच्छे से रख सकूँ।
माँग लूँ यह मन्नत कि फिर यही "जहाँ " मिले
फिर वही गोद और फिर वही "माँ " मिले।
