मेरी कैद
मेरी कैद
मेरा दिल आज मुझसे कुछ बोल उठा -
प्रीत से मुझे यूँ पराया न कर,
खुशी से मेरा यूँ मुँह ना मोड,
अपनों से यूँ अलग ना कर,
खुद को अपने ही कैद में कैद करके;
मुझे यूँ जिंदा दफना तो न दो
नफरत को प्यार से देखूंगा मैं,
दर्द के काँटों को सह लूँगा मैं,
गम के प्याले को भी पी लूँगा मैं,
अपमान को भी सम्मान दूँगा मैं
बस! डर की चादर फैलाकर,
इस जिंदा दिल को मूर्दा तो ना बना
लिपटने दे आज मुझे,
इस जिंदगी की किरनों से
आजाद करके खुद को,
अपने ही इस कैद से!
