मेरा तारा सपना
मेरा तारा सपना
सपने बुने मैंने लाखों,
छोड़ा इन्हे आँगन में,
उछल-कूद करके,
गायब हो गए सारे।
ऐसे कितने सपने बुने मैंने,
जैसे मैं सपनों की परी,
जुगनू की तरह टिम-टिमाकर,
गायब हो गए सारे।
पर बचा सिर्फ एक ही,
मैंने कहा फिर उसे-
गायब हो गए सारे,
तुम क्यों खड़े यहाँ?
कहा उसने मुझसे फिर,
न जाऊँगा मैं तुझे छोड़कर,
पड़ा रहूँगा यहीं आँगन में,
हाथ पकड़कर तेरा,
साथ रहूँगा तेरे।
मैं घबराई, चिल्लाई, चिख़ पड़ी,
हर सपना मेरा टूट गया, बिखर गया,
तुम कहां के सिकंदर?
जा तू भी लौट जा,
जिने दे मुझे ऐसे ही।
फिर वह बिलगा मुझे,
लिपटकर कहा उसने,
ना छोडूँगा तेरा दामन,
मैं तेरे मन का एक बच्चा।
साथ मुझे रखना तू,
इस दुनिया को दिखाना तू,
कैसा है ये तेरा बच्चा!
अनाथ ना कर तू मुझे,
माँ के तरह जन्म तो दे दिया,
उसी की तरह ममता भी तो दे,
बड़ा होकर दूँगा मैं तुझे सहारा
दुनिया की सारी खुशी,
तेरे नैनों में भर दूँगा
समझने दे इस दुनिया को,
सिर्फ सपना नहीं,
हकीकत हूँ मैं तेरी।
क्योंकि जुगनू नहीं,
हूँ मैं तेरा एक तारा सपना!