मेरी दोस्त
मेरी दोस्त
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ना खुदा खफ़ा है
ना मुहब्बत मुस्तफा है
ज़िन्दगी खुशनुमा हो गयी अब तो
शामो सुबह,
तेरी खुशबू हर दफा है
हम तो मर गए इश्क़ की खाफिफ़ा में
लेकिन आज भी ना खुदा खफ़ा है
ना मुहब्बत मुस्तफा है ।
