मेरी अंतरात्मा
मेरी अंतरात्मा
1
महफ़िल सजी हुयी है ।
ज़रा ध्यान दे दे साक़ी ।।
बर्बाद हो के आया हूँ ।
एक जाम दे दे साक़ी ।।
एक एहसान कर मुझ पर ।
मेरे साथ बैठ कुछ पल ।।
कुछ बाँट ग़म मेरा ।
अपनी मुस्कुराहट बिखराकर ।।
मेरे पास कुछ नहीं है ।
सब छोड़ गए मुझको ।।
इस जाम के एवज़ में ।।
मैं क्या दे दूँ तुझको ।।
तू नाराज़ मत होना ।
ये क़र्ज़ रहा मुझ पर ।।
कभी आबाद हो गया तो ।
सब लुटा दूँगा तुझ पर ।।
२
आधी रात होने को है ।
मैं अब थक रहा हूँ ।।
हाथों में ले के जाम ।
मैं अब तक जग रहा हूँ ।।
कब तक करूँ मैं इंतज़ार ।
ये तो मुझे बता दे ।।
चल लौट आ मेरे पास ।।
मुझे आग़ोश में सुला दे ।
मुमकिन नहीं हैं ज़िंदगी ।
अब तो बसर तेरे बिन ।।
ना छोड़ अब तो ऐसे ।
तड़पा के मुझको हर दिन ।।
कटती नहीं एक रात ।
कैसे कटेगा जीवन ।।
तू नहीं मुझे मिली तो ।
मर जाऊँगा तेरे बिन ।।
३
तेरी सोहबत का ये असर है ।
मुझे याद कुछ नहीं है ।।
कब शाम ढल गयी है ।
इसकी खबर नहीं हैं ।।
बिखर गयी है चाँदनी ।
हवा तेज चल रही है ।।
बिखरा के अपनी ज़ुल्फ़ें ।
तू ख़ुद सिमट रही है ।।
कितना हसीन पल है ।
कितना हसीं नज़ारा ।।
दिल मेरा कह रहा है ।
अब बस नहीं हमारा ।।
हर रात ऐसी बीते ।
यही सोच मैं रहा हूँ ।।
तू आग़ोश में रहे सदा ।
यही दुआ कर रहा हूँ ।।
