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Amit Kumar Pandey

Others

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Amit Kumar Pandey

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मेरी अंतरात्मा

मेरी अंतरात्मा

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इस शहर में मेरे ज़िम्मे काम बहुत हैं ।

इसलिए मेरे सर इल्ज़ाम बहुत है ।।

किससे करूँ शिकायत कुछ सूझता नहीं।

लोगों के मेरे ऊपर एहसान बहुत हैं ।।


मेरे हौसलों में उड़ान बहुत हैं।

सफ़र कठिन है और इम्तिहान बहुत है ।।

मैं वो नहीं जो मुश्किलों से डर जाऊँ ।

अभी मेरे इस दिल में अरमान बहुत हैं।।


न तेरे पास फ़ुरसत थी और न मैं ख़ाली था ।

फ़ासला बढ़ता गया, यही मुनासिब था ।।

कुछ अपनी मजबूरी थी,कुछ वक्त का तक़ाज़ा ।

न मैं अपनी सोच बदल पाया और न तुम अपनी आदत।


कुछ मैने कर लिया होता,कुछ तुमने सह लिया होता ।

भुलाते तल्खियाँ दिल की,तो ये रिश्ता ख़त्म नहीं होता।।

न कोई अपना हुआ,न हम अपने आप के हुए ।

अब तो ऐसा लगता है,ताउम्र सिर्फ़ हालात के हुए ।।



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