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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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वैष्णव चेतन "चिंगारी"

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मेरा समाज

मेरा समाज

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मेरा समाज जाग चुका है ,

वैष्णव बैरागी समाज उत्थान का,

बिगुल चारों ऒर बज चुके है,

सदियों से सोया 

मेरा समाज जाग चुका है,

घंटियों, नगाड़ो 

और

शंखनाद से जो जगाता प्रभु को,

वो खुद सोया रहा सदियों से,

वो खुद जाग चुका है 

न रुकना है ,न ही झुकना है,

बस करवां बढ़ाते चलना है, 

न भीख मांग रहे है, 

न ही आरक्षण मांग रहे है

बस हम तो,

भूराजस्व अधिकार मांग रहे है,

देर आई दूरस्थ आई 

मेरे समाज को सद्बुद्धि आई,

बड़े चलो बस बड़े चलो.

  


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