मेरा प्यारा बचपन
मेरा प्यारा बचपन
बड़ी हुड़दंगी, खेल-खिलौने सब कुछ मैंने पाया है।
घर-बाहर, मम्मी-पापा संग खूब उधम मचाया है।
भाई-बहनों की रही चहेती, उनपर अधिकार जताया है।
खेलकूद में सहपाठी संग मिलकर धूम मचाया है।
हुई बड़ी जब दुनिया देखी, खिला-खिला सब पाया है।
यह भी दुनिया वह भी दुनिया,
क्या खूब धूम मचाया है।
ब्याह गई, पहुंची ससुराल, वहां पहुंच फिर जाना हाल।
बचपन क्या था, मम्मी-पापा, बंधु-भाई सब प्रिय-प्रिया।
यौवन था अब जीवन में बस,
थी फिर भी कुछ जिम्मेदारी।
वहां फिर वही हॅंसी थी, वही ननद थी आलि-सी
।
मात-पिता भी वहां मिले मुझे,
फिर घर-ऑंगन सब अपना था।
यूॅं पूछो तो लगता जैसे कोई मेरा सपना था।
हाॅं जी! एक अदद पति थे जिन पर हुक्म हमारा चलता था।
वही एक थे जिन पर यौवन मेरा मरता था।
हुड़दंगी सब खेल-खिलौने अब भी मुझको प्यारे हैं,
पर मेरे बच्चों के आगे यह सब मुझसे हारे हैं।
मेरा बचपन, उनका बचपन नहीं कहीं कोई भेद रहा।
बचपन बचपन है, उनका हो या फिर मेरा था।
हुड़दंगी सब खेल-खिलौने अब भी वैसे लगते हैं।
बस समय कहीं अब और आ गया,
पर फिर भी बचपन बचपन है,
मेरा बचपन बचपन है।