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सुधीर गुप्ता "चक्र"

Others

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सुधीर गुप्ता "चक्र"

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मैं और तुम

मैं और तुम

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मैं और तुम

अलग-अलग बिंदुओं से

शुरू होकर

रेल की पटरी की तरह

समानांतर चल रहे हैं

लेकिन

ऐसा क्यों

और

कब तक

क्यों न हम

एक-दूसरे पर लम्ब डालकर

सदा के लिए गले मिल जाएं

और

एक हो जाएं।


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