मां
मां


ए मां लिखू भी क्या तुझपे में
कहना तो बहुत कुछ है
पर शुरू कहां से करूं मैं ।।
दिनभर की थकान में , सुकून की नींद है तू,
भूके पेट की आवाज़ भी , मुझसे तेज सुन लेती है तू,
हा कभी कभी बिनकहे, बोहोत कुछ केह देती है तू
दो रोटी मांगू , तो चार परोस देती है तू ।।
सलाम है मां तुझे , जो तू हर गम सह लेती है
शायद इतनी शक्ति , उस भगवान में भी ना होती है ,
आंच आए मुझपे , तो पहले तू आती है
पैरों पे खड़े रहना , तू ही तो सिखाती हैं ।।
तुझसे ही शुरूवात मेरी ,
तुझसे ही दुनिया आबाद मेरी
मेरी खुशी में छुपी दुआ तेरी
मेरे संस्कारो में छुपी बोली तेरी !
खामोशी भी मेरी ,कैसे समझ लेती है तू
यूहीं नहीं रब से भी,उपर मानी जाती है तू ,
सहमपन को भी मेरे, सुकून में बदलती तू
देखा जो तुझे ,तो जन्नत सी लगती तू !