माँ, तुम तो कहती हो
माँ, तुम तो कहती हो
माँ,
तुम तो कहती हो,
पति ही सबकुछ है,
उसे ही माँ समझो,
उसे ही पिता समझो,
उसे ही भाई समझो,
उसे ही बहन समझो,
उसे ही दोस्त समझो,
उसे ही प्रियतम,
पति ही सबकुछ है,
हाँ माँ
उस पति की ख़ुशी के लिए
मैं करती हूँ सब कुछ,
लेकिन वही पति मुझे
तुमसे दूर क्यों करना चाहता है,
बहू को तो सास ससुर के साथ
रहना ही होता है,
उनकी सेवा करनी ही होती है,
मानती हूँ, ये मेरा कर्त्तव्य है,
मैं निभाऊंगी,
लेकिन
अगर मैं पति को उसके माता पिता से
अलग नहीं कर रही,
तो वो मुझे मेरे माता पिता से
दूर क्यों करना चाहता है,
माँ अगर पति सबकुछ है तो
वो मेरी ख़ुशी क्यों नहीं चाहता ,
पति सबकुछ है,
लेकिन क्या पत्नी कुछ भी नहीं है ???
