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गौरव मौर्या

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गौरव मौर्या

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माँ के हाथों से बुने स्वेटर

माँ के हाथों से बुने स्वेटर

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शहर की उस कड़कड़ाती ठंड में,

गर्म कपड़े निकालने के उद्देश्य से,

जब उसने माँ द्वारा दिया अपना बैग खोला!


तमाम गर्म कपड़ों के बीच,

उसने माँ के हाथों से बना स्वेटर देखा!

हालांकि उसे बुने स्वेटर न भाते,

परन्तु वे स्वेटर उसे माँ की याद दिलाते!


गाँव से दूर रहकर शहर में वह पढ़ाई करती,

एकांत रातों में वह अपने घर को याद करती!

उन स्वेटरों को स्पर्श करते ही,

माँ के कोमल हाथों की प्यार भरी नरमी उसे महसूस हुई!


उन्हें याद कर वह अत्यंत मायूस हुई!

माँ का एकांत रातों में लोरी सुनना,

तरसी निगाहों में काजल लगाना,

उलझे केशों को प्यार से सवारना,

हाथों में ममता की मेहंदी लगाना,

सदैव प्रेरक बातें बताना!


इन भूली-बिसरी यादों ने,

उसे अंदर तक उदास कर दिया!

झट से उसने उस स्वेटर को पहन,

माँ को उनके निश्चछल प्रेम के लिए,

हृदय से सादर धन्यवाद दिया।


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