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ललकार

ललकार

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एक बैठे-बैठे सोच रहा था

जीवन को बारीकियों से देख रहा था

क्यों हम जीते हैं और किसने हमको जन्म दिया

क्या चाहता है वह जिसको हमने खुदा कहा


जीवन तो देता है पर मौत के साए तले

रिश्ते बनाता है जो वह मायाजाल में पले

खुशियों का कोई अर्थ नहीं क्योंकि दुख भी वह अपार मले

साँस अटक जाती है जब दुख से कहता है चल अब साथ चलें


तेरा दिमाग तो ठीक था जब तूने सोचा आ दुनिया रचे

या तू भी वह क्रूर है जो दूसरों के दुख से अपनी खुशियॉं बुने


क्यों छुपा है परमात्मा के छोले परे

दम है तो आ मेरे साथ मैदान में, चल कुश्ती खेले।


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