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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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हरि शंकर गोयल "श्री हरि"

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लक्ष्य

लक्ष्य

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हर इंसान अलग है 

तौर तरीके अलग-अलग 

विचार अलग-अलग हैं सबके 

सबके लक्ष्य हैं अलग अलग । 

किसी का लक्ष्य है धन दौलत

तो किसी को चाहिए शोहरत 

कोई सत्ता का बना है दीवाना 

तो कोई प्रेमी आशिक मस्ताना 

कोई भक्ति भाव का भूखा है 

कोई बनना चाहता नौकरशाह 

कोई देश की खातिर सैनिक बन 

नहीं करता प्राणों की परवाह 

कोई "झूठी पत्तल" चाट रहा 

कोई स्वाभिमान की राह चला 

कोई जल्दी घर भरने की खातिर

तिहाड़ जेल की ओर चला 

कोई गीतकार बनकर के फिर 

गीतों में अमर रहना चाहे 

कोई स्वर लहरी बिखराने को 

संगीतकार ही बनना चाहे 

कोई बुद्धिजीवी बनकर के 

अपने आका का काम करे 

कोई जेहादी शायर सरेआम 

"मां" पर शायरी नीलाम करे 

कोई चौकीदार बनकर भारत की 

पल पल की रखवाली करता 

दुष्ट पड़ोसियों के मंसूबों को 

क्षण भर में कैसे ध्वस्त है करता 

लक्ष्य कोई हो मगर हो उससे 

मानवता का बस कल्याण 

हम सबको मिलकर के करना 

है भारत का नव निर्माण । 


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