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Geeta Dhawanluckwal

Others

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Geeta Dhawanluckwal

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क्योंकि लड़के रोते नहीं

क्योंकि लड़के रोते नहीं

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अनाथ हो गया था आज वो

बाबा भी छोड़ चले साथ जो

भीतर ही भीतर रो रहा था

आंसू आने से पहले रोक रहा था


दर्द दिल में था बेशुमार

गम का जो टूटा पहाड़

चाहता था रो लूं दहाड़

किसी के कंधे का ले सहारा

बहा दूं आंखो से अश्क सारा


यूं घुट घुट कर मैं जाऊंगा

कैसे बाबा सपने पूरे कर पाऊंगा

तभी किसी ने आकर कहा

तू बहुत दुखी है जानता हूं

अकेला हो गया मानता हूं

आ मेरे कंधे का सहारा ले

 जितना जी चाहे रो ले


पर वो ज़रा न रोया

देख उसे यूं कहने लगा

 तुम तो बहुत बहादुर लगते हो

 पहाड़ सा दर्द भी सह सकते हो


बोला साहब तो कुछ नहीं होता सर

रोना तो चाहता हूं जी भर

पर रो नहीं सकता

क्योंकि लड़के कभी रोते नहीं

वो कमजोर होते नहीं।।


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