कविता
कविता
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अक्सर देखा करती हूँ मैं
अनेक कवितायें कल्पनाओं में
जो इंतज़ार में है मेरे शब्दों के
उतरने को मेरी कलम से
और मैं
व्यग्र हो उठती साकार देने को
उन शब्दों को जो आँखों मे निरंतर
उछालता कूदता सा यथार्थ होने को बेसबरा सा..
हाँ , मैं स्वीकारती हूँ मेरी कविता
क्षणिक होती है पर सराबोर होती हैं
मायाजाल से मैं कवियत्री नहीं
जादूगरनी हूँ
शब्दों की, अहसासों की, भावनाओं की..
