कविता प्रेमी।
कविता प्रेमी।
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ये कविताओं की दुनिया
आकर्षित करती है मुझे
ऐसा लगता है कि
जैसे कोई प्रेमी अपनी
प्रेमिका को आकर्षित करता है
खिंच लाती मुझे अपनी तरफ
ये कविताओं की दुनिया
मेरा दिल भी तो आतुर रहता है
इसे लिखने और पढ़ने के लिए
जितना करीब जाएं इसके
और उतने ही करीब
हम होते चले जाते है
कैसा रिश्ता है ये
मेरा और तुम्हारा
तुम बोलती हो बिना जुबाँ के
और हम जुबाँ के होते हुए भी
लिखते हैं तुम्हें जी भर के
निहारते हैं और मुस्कुराते हैं
तुमसे जब जब मिलते हैं
कभी अपना ख्याल हो
बताना मुझे भी जऱा
ऐ कविता,
रात बहुत हो गयी
तुम्हें देखते और पढ़ते
चलो सो जातें हैं हम अब
सपनों में मिलने ज़रूर मुझ से
तुम मिलने आना दोबारा।
