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Surendra Sharma

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कविता कोरोना

कविता कोरोना

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दुनिया को दिया झकझोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

हर ओर मचा है शोर, 

अरे रे बाबा ना बाबा।


कैसा जीवाणु आया,

हर ओर है खौफ़ मचाया।

देता नहीं हमें दिखाई,

घनघोर अंधेरा छाया।


चलता नहीं किस पर जोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

हो गये घर बैठे बोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।


चौथा लोकडाऊन आया,

ओन लाईन ही खुल पाया।

ग्रीन, रेड और औरेज,

किसने है जोन बनाया।


घर में भी नहीं अब ठौर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

सोश्यल डिस्टेंन्सिग ओर,

अरे रे बाबा ना बाबा।


घर में ये काम करें हम,

खाये आराम करे हम।

उठकर फिर फिर से खायें,

बिल्कुल नहीं यार डरे हम।


देखें अब किसकी ओर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

जीवन का ओर न छोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।


पत्नी जी डांट रही है,

सब चीजें छांट रही हैं।

सर पर घर बार उठाये,

साहिब जी लाट रही है।


अब खींच रही वो डोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

तूफान मचा हर ओर,

अरे रे बाबा ना बाबा।


किस बात का रोना तू, 

कैसा कोरोना है तू।

तुझे असर नहीं पड़ता है,

जो रोना-धोना है तू।


कीटाणु है तू घनघोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

हम फँस गये चारों ओर,

अरे रे बाबा ना बाबा।


यह सबसे बड़ी लड़ाई,

लड़ना है हमको भाई।

ये कैसी आफत आई,

दुनिया ही बंद कराई।


मुंह ढक सब लगते चोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।

करते अब सब इग्नोर,

अरे रे बाबा ना बाबा।



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