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Rahul Dev

Others

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कवि और कविता

कवि और कविता

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कविता

फूट पड़ती है

अपने आप ही

जैसे किसी ठूँठ मेँ

अचानक कोँपले

फूट पड़ें;

या

किसी जंगल मेँ

झाड़ियों का

एकदम उग आना

ठीक उसी प्रकार

कविता उग आती है

बगैर कुछ कहे

बगैर किसी भूमिका के

मेरे मस्तिष्क मेँ

और मैं

उसे सजा लेता हूँ

कागज के

किसी पन्ने पर !


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