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कुछ कह पाते

कुछ कह पाते

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कुछ कह पाते,
कुछ बात हुई होती तो दिल का बोझ बंटा होता....

वो सिले होंठ चला गया.... बस यूं ही ...

मेरे स्वप्न फिर मोती हुए.... चाँद उगते ही...

उस शाम ने कितनी आसानी से जुदा कर दिए दो पहलू....
अब वो 'मेरा सूरज' लौटे,
तो ये 'ओस' झरे.....

उसे ये संदेसा देना है....
प्रिय...
बस यूं ही बस एक बार ... तुम लौट आओ पलक थकने से पहले ... ये मोती छुपाने हैं, तुम्हारे दामन में ....


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