कुछ चार पंक्तियाँ
कुछ चार पंक्तियाँ
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कुछ चार पंक्तियाँ लीखना चाहता हूं,
एक खुशी की लीख दूंगा,
एक गम की लीख दूंगा,
एक किसी आस की लीख दूंगा |
समझदारी है थोडी सी,
थोडी सी बेवकूफी चाहता हूं,
कभी जद्दी था नहीं,
पर थोडासा होना चाहता हूं |
किसी दिन टूटा हू, बीखरा भी हू,
और खुद से संभला भी हू,
हिम्मत रत्ती भर नहीं मुझे मे,
पर थोडी सी बाटना चाहता हूं |
इतनी बूरी नहीं मेरी ये जींदगी,
पर इतनी बेहतरीन भी कहा,
थोडी और बेहतर की कोशीश है,
या एक कोशीश की उम्मीद रखना चाहता हूं |
कुछ चार पंक्तियाँ लीखना चाहता हूं,
एक खुशी की लीख दूंगा,
एक गम की लीख दूंगा,
एक किसी आस की लीख दूंगा ||
