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Pawan [ पवन ] Tiwari [ तिवारी ]

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Pawan [ पवन ] Tiwari [ तिवारी ]

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किताबें

किताबें

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सोचता हूं अब लोगों के हाथों में किताबें नहीं दिखती

पर सच यह भी है कि मेरे हाथों में भी किताबें नहीं दिखती

कुछ दोस्तों के हाथों में कभी-कभी दिखती थीं  किताबें

पर मेरे हाथों में तो रोज़ रहती थी किताबें

जो रिश्ता था रूहानी सा किताबों से, किताबी हो गया

थी दोस्ती जिसकी किताबों से रोज़ की

अब वह मुसाफिर हो गया

कल जब मैंने खोली दराज़ तो

कानों में गूँजी किताबों की सिसकियां

और जब छूकर देखा तो

हर पन्ने पर थे ज़ख़्म के निशान

किताब के जिस चेहरे पर

अक्सर घूमती थी मेरी अंगुलियां

दीमकों ने भर दी थी

वहां हजारों दर्द की कहानियां

जिन्हें मैं कभी-कभी आधा-अधूरा

पढ़कर रख देता था तकिये के नीचे

अब जब लोग मोबाइल और

 टैब पर घुमाते हैं उंगलियाँ

ऐसे में उन किताबों को

उन याद के लिए मुड़े पन्नों को कौन सींचे

अब किताबें हो गई हैं उन बुजुर्गों की तरह

जिनसे हर कोई कतरा कर बढ़ जाना चाहता है आगे

नई तकनीक के ज़माने में इन किताबों के पीछे कौन भागे

जैसे बड़े-बुजुर्गों के पास घड़ी-दो-घड़ी

बैठने का संस्कार ख़त्म होता जा रहा है  

कुछ वैसा ही किताबों से मिलने-मिलाने

का सिलसिला टूटता जा रहा है

किताबें भी एक संस्कार हैं

संस्कार भी नष्ट हो रहे हैं ऐसे में

किताबों को नष्ट होने से कौन बचाएगा

अगर हमें बनना है आदमी से मनुष्य

तो बचाना होगा किताबों को क्योंकि

किताबें देती हैं मनुष्य बनने का संस्कार


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