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ख्याल और दिमाग

ख्याल और दिमाग

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शाम के साये में, कुछ ख्याल आये थे!

कुछ मेरे अपने थे, कुछ थोड़े पराये थे !!


दिमाग में ख्यालों की गहमागहमी थी !

मै सोना चाहती थी, पर नींद से कोसो की दूरी थी !!


तभी अचानक दिमाग में कुछ हलचल हुई !

दिमाग के द्वार पर नए ख्याल की दस्तक हुई !!


दिमाग थका था सोना चाहता था !

ख्याल नया था दिमाग में दाखिल होना चाहता था !!


दोनों बहस कर रहे थे तर्क-वितर्क चल रहा था !

एक दरवाजे पर तो दूसरा भीतर से लड़ रहा था !!


ख्याल बोला दिमाग से, माना कि तू महान है सर्व शक्तिमान है !

पर न भूल मै ख्याल हूँ, तेरे वजूद कि शान हूँ !!


दिमाग बोला ख्याल से, तू तो एक ख्याल है,

तुझे बनने में अभी साल है !मेरे पास तो ख्यालों का जाल है !!


बात आगे बढ़ रही थी, दोनों कि जिद चढ़ रही थी !

तभी ख्याल दिमाग को धकिया के अंदर आ गया !!


मेरी बोझिल आँखों से नींद को भगा गया !

यही तो वो ख्याल था, जिसका मुझे इंतजार था !!


दिमाग भी समझ गया, चुपके से चलने लग गया !

न अब मुझे नींद थी, न दिमाग को थकान थी !!

बस उस एक ख्याल में बाकी कि शाम थी !!!


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