ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ
ख़ुशियाँ ही ख़ुशियाँ

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सुबह सवेरे, मेरी खिड़की से आती
स्वर्णिम किरणें ,
लाती है, मेरे लिये ख़ुशियाँ अपार।
जब कलरव चुलबुल पक्षियों के,
गूँजते हैं कानों में,
स्पंदित करते हैं, मेरे ख़ुशियों
का संसार।
कोमल नवीन प्रस्फुटित कलियाँ,
रंग और सुगंध से,
भरती है, मेरी झोली, ख़ुशियों
से बार-बार।
हर नया सवेरा, ले आता है साथ
अपने,
मेरे लिये, ख़ुशियों से भरे उल्लास
का करार।
बस ऐसे ही होती है प्रतिदिन,
मेरे ख़ुशियों की शुरूआत ।