कहाँ हैं जिंदगी
कहाँ हैं जिंदगी
घड़ी, हर पहर, हर दिन, हर पल, दर्द में ,खुशी में ,नींद में ,खवाब में ,कशमकश हैं कई ,हल हैं कई नहीं चल रहा हूँ मैं ,मगर दौड़ रहीं हैं जिंदगी । दोस्ती ,दुश्मनी ,रिश्तों कीं हैं ना कमी अपनो में ही खुद को तलाशती जिंदगी इस शहर से उस शहर ,इस डगर से उस डगर थक जाता हूँ मैं ,मगर थकती नही हैं जिंदगी । कल भी आज भी ,आज भी कल भी वहीं थीं जिंदगी ,वहीं हैं जिंदगी ,रात कया ,दिन कया ,सुबह कया ,शाम कया सवाल थीं जिंदगी ,सवाल हैं जिंदगी । जी भरकर खेलों यहां मगर संभलकर बचपना भी जिंदगी परिपक्वता भी जिंदगी मनुज भी ,पशु भी ,खग भी,तरु भी जिंदा हैं सब मगर मानवता हैं जिंदगी । हम हैं ,तुम हों ,ये हैं, वो है सब हैं यहां मगर कहाँ हैं जिंदगी सोच हैं ,साज हैं ,पंख हैं ,परवाज हैं ,नाज हैं आज मगर कहाँ हैं जिंदगी ।