आज़ादी का दीप
आज़ादी का दीप
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14 अगस्त की शाम लिखा मैंने
क्या आज़ादी का दीप जलेगा कभी?
जो जले थे कभी
वो भी बुझ गए
अगर सरकारें करती रहीं मक्कारी
तो न सुधरेगी जनता की बदहाली
ऐसे मे आज़ादी का दीप जलेगा कभी
कब तक लुटेंगी बेटी की आबरू?
क्या न मिलेंगी बेटी को आज़ादी?
ऐसे में आज़ादी का दीप जलेगा कभी
कब तक रहेंगी अब बेरोज़गारी
क्या अब न मिटेंगी गरीबी कभी
ऐसे मे आज़ादी का दीप जलेगा कभी.