जय अम्बे
जय अम्बे
जय अम्बे
नव दुर्गा, नव तेज ,नव दिन, नव रात्रि
सीस मुख दमकता प्रज्जवल मां का
जब सुगन्धित नव ज्योत जगमगाती,
पावन नव वर्ष सुख समृद्धि का आया
घर घर खुशहाली हर्ष उल्लास है छाया
गांव नगर बस्ती हर मंदिर जगमग जगे
मां के दरबार की छटा सबसे न्यारी लगे,
भजन कीर्तन सत्संग की मधुर रोनक लगी
दूर तक दर्शन हेतु भक्तों की भारी भीड़ लगी
लाल चुनर कानों में कुंडल घेरदार पोशाक है
शेर पर सवार अम्बे की छवि अतुल अपार है,
चक्र त्रिशूल हाथों में धरे शक्ति के प्रतीक हैं
असुर निशाचर कांप उठें नैनों में ऐसा रोष है
मां दुर्गा मां काली मां अम्बे रानी तारणहार हैं
नारी में जोश भरती मां स्वयं शक्ति स्रोत हैं,
सबके कष्ट हरो मां सबका करो शुभ मंगल
हर बाधा से बाहर निकले पार करें घनजंगल
संतन की सहाय बनो मां दूर करो सब संशय
सही युक्ति से पार हो हल लो अपने आश्रय,
नवदुर्गा, नव तेज ,नव दिन, नव रात्रि
सीस मुख दमकता प्रज्जवल मां का
जब सुगन्धित नव ज्योत जगमगाती।
जय अम्बे
