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जिसका जनम और मृत्यु तू ही हो,,

जिसका जनम और मृत्यु तू ही हो,,

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जिसका जनम और मृत्यु तू ही हो

कुछ मंजिल पाने के लिए हम कुछ करते थे

कुछ मंजिल खोने के लिए भी हम कुछ करते है

जिस दिन हम कुछ सोच समझकर बोलते है

वही एक दिन किसी के ना किसी के जीवन मे होता ही है

बस एक ख़्वाहिश थी हमारी लफ्जों को

संभाला और आँसू को मिटाने की

पर वह भी एक होता है जिंदगी का पल

जब हमारी मंजिल भी टूट जाती है आसमान छूकर

ओर गिर पड़ती है बर्फ के बाढ़ जैसी टूटकर

न सम्भल पाए खुद को ओर न समझा करे किसी ओर को

तब बारिश भी गिर पड़ती है ओर रोते हुए कहती है

मेरे जैसी हालात तेरी भी है ऊपर वाले ने फेक दिया तो नीचे गिरना

पर भी मैं सम्भालती खुद को ओर बह जाती समन्दर के तट तक

जहा अंजान भी अपने हो जाये

वैसा ही तू बह जा मेरे जैसा खुद में

जिसका जनम ओर मृत्यु तू ही हो,,

ओर गिरकर उठने वाला भी तू ही हो ,



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