“जिनके हाथों में ताकत थी भारत का भाग्य बदलने की”
“जिनके हाथों में ताकत थी भारत का भाग्य बदलने की”
"जिनके हाथों में ताकत थी भारत का भाग्य बदलने की
उनको जल्दी थी केवल अपनी तिजोरियाँ भरने की
किसके सर सेहरा बाँधें के उसने सब बरबाद किया
सच तो यह है हम सबने मिलकर ही यह अपराध किया
जिसने पहली बार किसी नारी की अस्मत लूटी थी
सब देख रहे थे खड़े हुऐ क्या सबकी आँखें फूटी थीं
तब भी नारी उन ज़िंदा लाशों के बीच अकेली थी
कौन बढ़े रोके ये सब ये तब भी एक पहेली थी
दुर्योधन दु:शासन ने जब उसकी साड़ी खींची थी
सब देख रहे थे पर चुप थे सबने ही आँखें मींची थीं
अर्जुन का गांडीव भीम की गदा कहाँ पर सोयी थी
पांचाली सभा मध्य जब गला फाड़कर रोई थी
धर्मराज के उस अधर्म को कौन माफ़ कर सकता है
उजले कपड़े के धब्बे को कौन साफ़ कर सकता है
ईश्वर की अनुकम्पा से तब उसकी लाज बच गई थी
बस उसी समय से दुनिया में ये नई लीक चल गई थी
मिलती दुनिया को सीख नई यदि फ़ौरन न्याय किया होता
चीर खींचते उस पापी का मस्तक काट दिया होता"