जिंदगी
जिंदगी
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जिंदगी तुझे निभाते निभाते बडी दूर निकल आए हम।
बेताब हसरतों को बे शक्ल छोड़ आए हम।
महकता था जो सिर से पांव तक ख्वाहिशों के इत्र में,
उस शक्स को वक़्त के जाल में उलझा छोड़ आए हम।
जिंदगी तुझे निभाते निभाते बडी दूर निकल आए हम।
जब जब सोचा की मूड जाएं हम,
मगर खुद को जिम्मेदारी की बेड़ियों में जकड़ा पाएं अब।
उड़ते थे कभी अरमानों के पर लगाके,
मगर अब तो ख़्वाबों मै भी बे खौफ उड ना पाएं हम।
जिंदगी तुझे निभाते निभाते बडी दूर निकल आए हम।
अरमान ना था जिन ख्वाहिशों का हमें,
आज उन्हीं का खरीदार बन बाज़ार मै आए हम।
जिंदगी तुझे निभाते निभाते बड़ी दूर निकल आए हम।।