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Rinki Raut

Others

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जिंदगी की परछाई

जिंदगी की परछाई

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शहर के भीड़ में

गाड़ियों के शोर में

बाजार के चकाचौंध में

नहीं 

गोरैया ने आवाज़ लगाई

इस कंक्रीट के जंगल में नहीं

गाँव में ज़िन्दगी

आज भी है समाई

 

आज भी चिड़ियों के झुंड देते है दिखाई

शाम में गोधूली उड़ती है

आकाशवाणी के बोल देते हैं सुनाई

सुबह की बेला में

लिपा हुआ चूल्हा और आँगन

संस्कृति की केवल छाप नहीं

गाँव में संस्कृति ही छाई

 

बिना पढ़ाई के बोझ तले दबा बचपन

आम, बे

री, महुआ,अमरुद को घेरे बच्चे

हँसते, मुस्कुराते बच्चे

हवाओं में महुआ की महक

खेतों में पुरवाई की चहक

आज भी है गाँव में यादों की महक

 

सोहर, फगुआ के धुन है अलग

रिश्ते में गर्माहट

रोटी और सब्जी में

ताज़गी और अपनापन

दादा -दादी की याद

गाँव की हवाओं ने रखे है

अपने साथ

जिंदगी इस कंक्रीट के जंगल में

नहीं,

यादें और ज़िन्दगी साँस लेती है

मेरे गाँव में ही

 


 



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