जिंदगी का दौर |
जिंदगी का दौर |
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बहुत दूर सा हो गए वो खुशी का दौर,
ना जाने जिंदगी ले आई किस ओर।
मेरी हर एक पसंद नापसंद को भुलाकर,
कहां चला जा रहा हूं मैं अपने आप को
समझाकर।
रिश्तों की लगी दौड़ में बनने को महान ,
क्यो हर पल खो रहा हूं मैं अपना स्वाभिमान।
नक़ाब पहनी इस दुनिया से हूं बहुत अनजान,
दो रंग का खेल खेलूं नहीं हूं इतना बुद्धिमान।
छोड़ने को जमाने की उलझनें रात लाती है
थकान,
पर फिर से जिम्मेदारियों की सुबह
बना देती है शक्तिमान।