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Tarundeep singh Manchanda

Others

4.8  

Tarundeep singh Manchanda

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जीवन का अध्याय

जीवन का अध्याय

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एक बच्चा जब जन्म लेता है

तो दुनिया से अनजान होते है,

उसका मन कोमल और

स्वभाव से वो शांत होता है,

चारों ओर की चहल-पहल

को वो समझ नहीं पाता है,


कोई कुछ भी कहे या करे वो

अपनी दुनिया में मग्न रहता है,

वो इसलिए भी क्योंकि

दिमाग से अभी वो कच्चा है,

माँ बाप की परवरिश उसे

एक अच्छा इंसान बनाती है,

और हर बुरे कामों से बचाने

का वादा करती है,


फिर वो जिंदगी का सबक सीखने

अपने लड़कपन में कदम रखता है,

लोगों की ग़लत सोच के तले

फिर वो दबने लगता है,

वो यह तय नहीं कर पाता है की

उसके साथ यह क्यों हो रहा है,

उसने क्या गुनाह किया है जो

उसे यह सब सहना पड़ रहा है,


होता है जब मन परेशान तो

ग़लत रास्ता भी चुनता है,

देखने फिर वो रास्ता अपना

पहला कदम बढ़ाता है,

है वो अनजान की आगे क्या

लिखा है उस डगर में,

बस चल पड़ा है खुद को

ढकेलने उस भंवर में,

ये सब तनाव और लोगों के दबाव

के असर से होता है,

जो वो अब वो सब कुछ करना

चाहता है

जिसको लोग ग़लत बोलते हैं,

>


क्यों लोगों को समझाया नहीं

जा सकता,

क्यों लोगों की सोच को बदला

नहीं जा सकता,

यह क्या ग़लत रिवायत है

जो मेरे हिस्से भी आई है,

क्यों हर जगह अपने आप को

साबित करना पड़ता है,

मैं जो हूं उसका प्रमाण पत्र

देना पड़ता है,

की तू ऐसे क्यों चलता है या कोमल

स्वभाव से क्यों बात करता है,

क्योंकि ऐसे तो लड़कियाँ चलती हैं

या बात करतीं है,


सहा बहुत कुछ जीवन में और

दबाया हर एहसास जिसे था

लोगों ने ग़लत बताया,

फिर एक सुबह हुई और कोई

ऐसा मिला जो पहले एक अजनबी था,

बातों का सिलसिला फिर यूं चला

वो अजनबी कब अपना हो गया

पता ना चला था,


बाँटा उससे सब कुछ जो अब

तक दबा हुआ था,

फिर जाकर उस खास की वजह से

दबे भार का भाव कम हुआ था,

सोच उसकी को सलाम करता हूं

जो जिंदगी को एक पंछी सा

जीना सिखाता है,

और कहता है कि जिंदगी को

बेखौफ होकर जी

तो उड़ान तूझे ज़रूर मिलेगी और

हवाओं का ज़ोर भी तेरा कुछ नहीं

बिगाड़ पायेगा,

जीतेगा तू और पहनेगा वो

खूबसूरत ताज


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