जौहर
जौहर
जिनके पति ना है परमेश्वर, वो क्या जाने क्या पतिवर?
जिनको शौहर पे मान नहीं, सम्मान नहीं, गुणगान नहीं।
जो नित दिन वर बदलते है, कपड़ों से तन उघड़ते है,
उन्हें क्यों माता सम्मान मिले? कुछ तो उनको अभिज्ञान मिले।
अभिज्ञान मिले समर्पण का, प्रतिबिम्बित छवि हो अर्पण का,
कि याद रहे तप के दम पर, कभी सावित्री ने समर्पण पर।
यम अधिनियम को हराया था, मृत था पति जीवित कराया था,
नारी जब सत्व जगाती है, पूरी लंका हिल जाती है।
पति में सीता के प्राण बसे, तब सीता में प्रभु राम बसे,
कि ये वो प्रभु में अर्पण था, सीता सतीत्व समर्पण था।
कि कोस समंदर रावण था,प्रभु थे उनका मन पवन था,
फिर मानी अभिमानी पंडित,आखिर अभिमान हुआ दंडित।
फिर राम उन्हें मिल जाते हैं, वो सीता राम कहलाते हैं,
जब नर नारी का भान कहाँ, ये सीता ये राम कहाँ।
फिर विजय उन्हीं का होता है, जिनका मन पावन ऊंचा है,
ये वो जाने क्या सीता राम, वो क्यों इनको करें प्रणाम।
नहीं नारी सा कोई व्यवहार, फिर क्यों अपेक्षित सुलभ आचार?
कहने को नारी सूर्पनखा, फिर लक्ष्मण से क्यों नाक कटा?
वो तो तन की हीं भूखी थी, वसन अगन की भूखी थी,
जिन्हें मर्यादा का नहीं है ज्ञान, क्यों मिले उन्हें नारी सम्मान?
ये उन्हें ज्ञात ये शक्ति क्या? ये शिव कौन ये भक्ति क्या?
भक्ति में इतनी शक्ति क्या? नारी सतीत्व अभिव्यक्ति क्या?
शिव शक्ति को मिल जाते है, प्रभु सीता राम कहलाते है,
ऐसे जो वसन में बसतें हैं, तो तन की बात समझते है।
जो रोज़ बदलते कपड़े है, कपड़ों से बदन उघड़ते है,
जिनके घर मदिरालय होते, रातों को ना आलय सोते।
क्या वो समझेंगे भारत को, नीव से अज्ञात,इमारत को?
जो रोज़ बदलते हैं शौहर, क्या जान सकेंगे वो जौहर?