इश्क़
इश्क़

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इश्क़ में सारा जहां सच्चा लगा
ख्वाब कितना आज का अच्छा लगा।।
बाद मुद्दत के मिला वो ख्वाब में
यार मेरा आज भी सच्चा लगा।।
मुस्कुरा कर फिर मिला वो बाग में
आज भी वो फूल का गुच्छा लगा।।
आंच फिर से आग की भाने लगी
आस में जीना मुझे अच्छा लगा।।
जो ज़हर था आज से पहले कभी
आज वो ही बात का मीठा लगा।।
मैं भला जाऊं कहां उसके बिना
कोई मुझको भी कहां अच्छा लगा।।
चांद आया तो उजाला भी हुआ
ईद भी मेरी हुई अच्छा लगा।।
बांध कर पैरों में अपने पैंजनी
बन गई मीरा मुझे अच्छा लगा।।
श्याम के होंठों की मैं हूं बांसुरी
भाव से जो भी मिला अपना लगा।।