हम धर्म , जाती पर अड़े रहे
हम धर्म , जाती पर अड़े रहे
हम धर्म , जाती पर अड़े रहे ,
इंसान को ना पहचान सके ,
जो वर्षों से साथ रहा अपने ,
उसको ना अपना मान सके ।
सुन "देव", कहे तुझसे ये तेरा मन
उस संग तू प्रीत कभी ना लगा ,
जो खुद के भीतर के मानव के ,
इंसानी रंग ना पहचान सके।
हम धर्म , जाती पर अड़े रहे....
है कौन बुरा और कौन भला ,
अब कौन करे इसका फैसला ,
जब खुद के भीतर के दानव को ,
हम खुद ही ना पहचान सके ।
हम पढ़े लिखे हैं,ये कहते हैं ,
फिर भी धर्म के दंगे सहते हैं ,
ये खेल सत्ता के दलालों का
अब तक हम ये ना जान सके।
हम धर्म जाति पर अड़े रहे .....
वो कहते हैं , हम सुनते हैं ,
वो बांटते हैं हमें , फिर भी चुनते हैं,
वो झूठ बोले हम सहते हैं
चोरों को नेता कहते हैं ।
अब जाग उठो , मत देर करो ,
जो हमे लड़ाए , ना उसकी खैर करो ,
वो राजनीति के प्यासे हैं ,
हम उनको ना पहचान सके।
हम धर्म जाति पर अड़े रहे .....
