ग़ज़ल
ग़ज़ल
1 min
27K
ग़ज़ल
जख़्म खाने चल पड़ा हूँ आदतन
दिल जलाने चल पड़ा हूँ आदतन
राज जो सीने में रखने चाहिऐं
फिर बताने चल पड़ा हूँ आदतन
बात पर वो कान जो धरते नहीं
क्यों सुनाने चल पड़ा हूँ आदतन
आदतन खाता सदा ही ठोकरें
सर झुकाने चल पड़ा हूँ आदतन
अब ठिकाना दिल में देंगे ठीक से
इस बहाने चल पड़ा हूँ आदतन
( गोबिन्द चान्दना )
