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Gobind Chanda

Others

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Gobind Chanda

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ग़ज़ल

ग़ज़ल

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ग़ज़ल

जख़्म खाने चल पड़ा हूँ आदतन

दिल जलाने चल पड़ा हूँ आदतन

 

राज  जो सीने  में  रखने  चाहिऐं

फिर बताने चल  पड़ा हूँ आदतन

 

बात पर वो कान जो  धरते नहीं

क्यों सुनाने चल पड़ा हूँ आदतन

 

आदतन खाता  सदा  ही ठोकरें

सर झुकाने चल पड़ा हूँ आदतन

 

अब ठिकाना दिल में देंगे ठीक से

इस  बहाने चल पड़ा हूँ आदतन

 ( गोबिन्द चान्दना )

 


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