एक उम्र वो मुझ में ठहरा सा रहा
एक उम्र वो मुझ में ठहरा सा रहा
1 min
266
एक उम्र भर मुझ में वो ठहरा सा रहा
बन्द आँखों में ख्वाब कोई गहरा सा रहा
ख्वाहिश थी एक दिन चाँद को छूने की
पर उस चाँद पर तारों का पहरा सा रहा
कुछ पल ही रहा मेरे पहलू में वो
वो पल मेरी ज़िंदगी का सुनहरा सा रहा
एक उम्र भर मुझ में वो ठहरा सा रहा
बन्द आँखों में ख्वाब कोई गहरा सा रहा
आरजू थी उसे दिल की पनाहों में लेने की
पर मिला जो ज़ख्म वो हरा का हरा सा रहा
आजमाता रहा मुझे वो किसी शतरंज पर ऐसे
जैसे मैं उसके लिए बस एक मोहरा सा रहा
एक उम्र भर मुझ में वो ठहरा सा रहा
बन्द आँखों में ख्वाब कोई गहरा सा रहा।।
